सोशल मीडिया का जितना सदुपयोग हो रहा है उससे ज्यादा दुरुपयोग हो रहा है। हाल में सोशल मीडिया पर बच्चा चोरी की अफवाहों के कारण देश के कई इलाकों में निर्दोष लोगों की पीट-पीटकर हत्या की घटनाएं हुई हैं। असम के कार्बी-एंलांग जिले के 29 वर्षीय नीलोत्पल और 30 वर्षीय अभिजीत नाथ एक झरने को देखने गए थे। स्थानीय लोगों ने बच्च चोर होने के संदेह में उन्हें पीट-पीटकर मार डाला। अभी रांची में एक आपत्तिजनक पोस्ट के कारण दो समुदायों के बीच हिंसक टकराव की नौबत आ गई। पुलिस-प्रशासन ने पोस्ट डालने वाले युवक को गिरफ्तार कर लिया और दोनों पक्षों को समझा बुझाकर मामला शांत कराया। एक पोस्ट के कारण बवाल होते-होते बचा। इस तरह की घटनाएं देश के विभिन्न हिस्सों में आए दिन हो रही हैं।
दरअसल सोशल साइटों पर आतंकी और अपराधी गिरोहों के अलावा शरारती तत्वों की सक्रियता ने सरकार, साजाजिक संगठनों, बौद्धिक वर्ग और शांतिप्रिय नागरिकों को गंभीर चिंता में डाल दिया है। सरकारी स्तर पर सोशल साइटों के प्रमोटरों पर अंकुश लगाने, दबाव डालने से लेकर कड़े कानूनी प्रावधानों को लागू करने की कोशिश की गई। आपत्तिजनक पोस्टों के कारण कई गिरफ्तारियां हुईं, मुकदमे चले लेकिन कोई अंतर नहीं पड़ा।
समस्या यह है कि सोशल साइटों का निबंधन और संचालन अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों के जरिए होता है। भारत सरकार के कानून उनपर लागू नहीं होते। उनपर प्रतिबंध भी नहीं लगाया जा सकता क्योंकि इससे सकारात्मक विचारों के आदान प्रदान का रास्ता भी बंद हो जाएगा जो वैश्वीकरण के इस युग में उचित नहीं होगा। सोशल साइटों के दुरुपयोग पर नियंत्रण के लिए जन समुदाय की ओर से ही पहल करनी होगी। कानून के जरिए इसे नियंत्रण करने का प्रयास अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने के सरकारी दुराग्रह के रूप में देखा जाएगा।
सुखद बात यह है कि पूर्वोत्तर के असम राज्य से इसकी शुरुआत हो चुकी है। गौहाटी विश्वविद्यालय के पीजी स्टूडेंट्स युनियन के महासचिव मोंजित शर्मा ने दो निर्दोष पर्यटकों की हत्या की घटना को गंभीरता से लिया और सोशल मीडिया के दुरुपयोग के खिलाफ एक जागरुकता अभियान छेड़ने का निर्णय लिया। विश्वविद्यालय के करीब पांच हजार पीजी छात्र इस अभियान में शामिल हो चुके हैं। अब विश्वविद्यालय से संबद्ध 400 शैक्षणिक संस्थानों को इस अभियान से जोड़ा जा रहा है। छात्र युनियन की इस सकारात्मक पहल का कुलपति समेत वरीय अधिकारी भरपूर समर्थन कर रहे हैं। यह अभियान धीरे-धीरे एक बड़ा रूप ले सकता है। इसे प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
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