देवेंद्र गौतम
आज 21 जून को पीएम मोदी ने रांची के प्रभात तारा मैदान में 40 हजार
लोगों के साथ अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया। उन्होंने भारतीय योग को
अंतर्राष्ट्रीय मान्यता दिलाई। संयुक्त राष्ट्र परिषद ने 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय
योग दिवस के रूप में स्वीकार किया। यह भारत के लिए गौरव की बात है। लेकिन हर
सिक्के के दो पहलू होते हैं। पीएम मोदी ने योग दिवस के रूप में एक ऐसी परंपरा की
बुनियाद रख दी, जिसको निर्वहन भविष्य के सभी प्रधानमंत्रियों को करना अनिवार्य हो
जाएगा। कल्पना कीजिए यदि 2019 के चुनाव में महागठबंधन की जीत होती और पीएम पद के
दावेदारों में कोई पीएम बन जाता तो अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस में अपनी भागीदारी किस
रूप में करता।
यदि राहुल गांधी प्रधानमंत्री बनते तो कम से कम दो सप्ताह पूर्व अपने
लिए एक योग प्रशिक्षक नियुक्त करते और प्रदर्शन के लिए कुछ आसन सीख लेते। भाषण भी
पहले से तैयार रहता और रट लिया जाता। चूंकि यह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाना
है इसलिए वे अपनी भागीदारी के लिए भारत के किसी शहर का नहीं बल्कि उत्तरी गोलार्ध
के किसी ऐसे देश का चयन करते जहां उन्हें छुट्टियां मनाना पसंद है। इसके कई लाभ
होते। एक तो अंतर्राष्ट्रीय संबंध बेहतर होते दूसरे योगासन के समय कुछ भूल-चूक
होती तो तत्काल कोई पकड़ नहीं पाता। कुछ विदेशी मित्रों के साथ समय गुजारने का
मौका मिल जाता। सूचना क्रांति के युग में देश को संदेश तो कहीं से भी दिया जा सकता
है। इसके लिए देश में रहना क्या जरूरी है।
यदि मायावती प्रधानमंत्री बनतीं तो उत्तर प्रदेश अथवा आसपास के किसी
राज्य के ऐसे दलित बहुल इलाके को चुनतीं जहां बसपा की जीत की संभावना होती। वहां
योगस्थ मुद्रा में अपनी मूर्ति भी स्थापित करतीं। यह हाथी पर बैठकर योग करने की
मुद्रा भी हो सकती थी। एक सूरत यह भी हो सकती थी कि वे योग को मनुवादी संस्कृति की
देन कहकर अपनी भागीदारी से इनकार भी कर देतीं। उनके वोटरों के बीच इसका भी
सकारात्मक संदेश जाता।
यदि ममता बनर्जी प्रधानमंत्री बनतीं तो कोलकाता में ही योग दिवस
मनातीं और कोशिश करतीं कि उनके साथ योग करने वालों में सभी धर्मों और संप्रदायों
के लोग शामिल रहें ताकि उनकी धर्मनिरपेक्ष छवि पर कोई आंच नहीं आए। अपने संदेश में
वे यह बतलातीं योग की शुरुआत बंगाल से ही हुई थी। वहीं से भारत के अन्य इलाकों में
इसे अपनाया गया। इसके आसनों में बंगभूमि की सुगंध मौजूद है। यह वैज्ञानिक है। लगे
हाथ सांप्रदायिक दलों पर इसके भगवाकरण का भी आरोप लगा देतीं।
आने वाले समय में यदि नीतीश जी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर पहुंचे तो
वे एक शुभकामना संदेश देकर पल्ला झाड़ लेते। स्वयं योग समारोह में शामिल होने से
इनकार कर देते। हालांकि देशवासियों को इससे मना नहीं करते।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संघ की पृष्ठभूमि से आते हैं। विज्ञान और
टेक्नोलॉजी में भी उनकी दिलचस्पी है। इसलिए योग के प्रति उनके रूझान को कहीं से
अस्वाभाविक नहीं कहा जा सकता। लेकिन योग के प्रति उनके रूझान में राजनीति का गणित
नहीं है, ऐसा नहीं कहा जा सकता। इस वर्ष वे योग दिवस रांची में मना रहे हैं। कुछ
ही माह बाद यहां विधानसभा चुनाव होने हैं। इस कार्यक्रम में उनकी मौजूदगी से
झारखंड के मतदाताओं के बीच एक संदेश जाएगा जिसका लाभ भाजपा को मिलेगा। उत्तर
प्रदेश विधानसभा चुनाव के पूर्व उन्होंने लखनऊ में योग दिवस मनाया था। इसका
जबर्दस्त लाभ मिला था। योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाने में इस कार्यक्रम का
योगदान रहा था। राजनेता का हर कदम राजनीतिक लाभ-हानि के गणित के आधार पर उठता है।
इससे इनकार नहीं किया जा सकता।
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