-देवेंद्र गौतम
पीएनबी घोटाले के आरोपी मेहुल चौकसी ने आशंका व्यक्त की है कि वे भारत लौटे तो माब लिंचिंग का शिकार हो सकते हैं। इसी आधार पर उन्होंने विशेष अदालत से गैर जमानती वारंट रद्द करने का अनुरोध किया है। चौकसी के मन में इस तरह का भय सचमुच समाया है या यह एक बहानेबाजी है पता नहीं। अगर सचमुच उन्हें ऐसा भय है तो इसका कोई कारण नहीं। भारत में भीड़ के हाथों पीट-पीट कर हत्या की घटनाएं निश्चित रूप से बढ़ी हैं लेकिन अभी तक किसी घोटाले के आरोपी पर भीड़ का कहर नहीं टूटा है। माब लिंचिंग या तो गौकशी के संदेह में हुई है या फिर बच्चा चुराने की अफवाह के कारण। तीसरा कोई कारण है ही नहीं। योजनाबद्ध तरीके से माब लिंचिंग नहीं होती। यह अचानक होती है। घोटाले के आरोपी तो हमारे देश में निर्भीक होकर घूमते हैं बल्कि ऐसे लोगों का भव्य स्वागत किया जाता रहा है। चारा घोटाले में फंसने के बाद लालू प्रसाद जब पहली बार जमानत पर छूटे थे तो राजद के लोगों ने उन्हें फूलमाला पहनाकर हाथी पर बिठाकर पटना की सड़कों पर ऐतिहासिक जुलूस निकाला था। कुछ लोगों ने आलोचना की भी तो दबी ज़ुबान से। कोई खुलकर सामने नहीं आया। शिबू सोरेन जब सांसद रिश्वत कांड में फंसे थे तो संताल आदिवासियों को इस बात का गुमान था कि उनके नेता इतने ताकतवर हैं कि प्रधानमंत्री से भी घूस ले सकते हैं। बहन मायावती के समर्थक उनपर भ्रष्टाचार के तमाम आरोपों के बावजूद उनके साथ खड़े हैं। मधु कोड़ा झारखंड की सड़कों पर शान से घूमते हैं। उनसे कोई पूछने नहीं जाता कि चार हजार का घोटाला करने के बाद आप मुंह से जनता के बीच आते हैं। डा. जगन्नाथ मिश्र ने कहा था कि भ्रष्टाचार हमारे राष्ट्रीय जीवन का एक हिस्सा है। जितने घोटालेबाज हैं वे ठाट से सीना चौड़ा कर देश के अंदर रहते हैं। घोटाला करके विदेश भागने की शुरुआत तो विजय माल्या ने की। ललित मोदी, नीरव मोदी और मेहुल चौकसी ने तो माल्या का अनुसरण भर किया। मेहुल चौकसी जिन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक मेहुल भाई कहकर पुकारते थे आज इस कदर भयभीत क्यों हैं। जनता से उन्हें डरने का कोई कारण नहीं है। उन्होंने जेल में कैदियों और जेल कर्मियों से भी खतरे की आशंका व्यक्त की है। इसमें भी कुछ दम नहीं है। ितना जरूर है कि 14 हजार करोड़ के घोटाले का आरोपी जब जेल पहुंचेगा तो वहां मौजूद गैंगस्टर उसका कुछ प्रतिशत बतौर रंगदारी जरूर मांगेंगे। जेलकर्मी भी उनसे सुविधा राशि की उम्मीद करेंगे लेकिन इसके बदले उनकी सुविधाओं का पूरा ध्यान रखेंगे। उन्हें जिस भी चीज की जरूरत होगी मुहैय्या करा देंगे। अपराधी सरगना भी रंगदारी लेने के बाद उनकी सुरक्षा का पूरा ध्यान रखेंगे। रंगदारी दरअसल मीडिया के शब्दकोश का शब्द है। अंडरवर्ल्ड के लोग वास्तव में प्रोटेक्शन फीस लेते हैं। फीस के बदले प्रोटेक्शन देते हैं। इतनी बड़ी रकम मेहुल भाई अकेले कैसे पचा सकते हैं। मौजूदा व्यवस्था में और लोगों का भी तो कुछ हक बनता ही है। मेहुल चौकसी ने माब लिंचिंग की आशंका अगर वारंट रद्द कराने के लिए व्यक्त की है तो कानूनी दांव-पेंच में इस तरह की तरकीब अपनाई ही जाती है। उन्हें एक मौलिक और सामयिक बहाना बनाने के लिए सराहा जाना चाहिए। लेकिन अगर सचमुच मेहुल भाई डरे हुए हैं तो डरने का कोई कारण नहीं। वे ठाट से स्वदेश लोटें एयरपोर्ट पर उनका भव्य स्वागत करने वाले फूलमाला के साथ मौजूद मिलेंगे। मुंबई में हाथी पर घुमाना तो संभव नहीं लेकिन उनका विजय जुलूस जरूर निकाला जाएगा। अगर राजनीति में उतर गए तो फिर कहना ही क्या। उन्हें चुनाव लड़ाने के लिए कई राजनीतिक दल दौड़ पड़ेंगे। आखिर भ्रष्टाचार हमारे राष्ट्रीय जीवन का अहम हिस्सा जो ठहरा।
पीएनबी घोटाले के आरोपी मेहुल चौकसी ने आशंका व्यक्त की है कि वे भारत लौटे तो माब लिंचिंग का शिकार हो सकते हैं। इसी आधार पर उन्होंने विशेष अदालत से गैर जमानती वारंट रद्द करने का अनुरोध किया है। चौकसी के मन में इस तरह का भय सचमुच समाया है या यह एक बहानेबाजी है पता नहीं। अगर सचमुच उन्हें ऐसा भय है तो इसका कोई कारण नहीं। भारत में भीड़ के हाथों पीट-पीट कर हत्या की घटनाएं निश्चित रूप से बढ़ी हैं लेकिन अभी तक किसी घोटाले के आरोपी पर भीड़ का कहर नहीं टूटा है। माब लिंचिंग या तो गौकशी के संदेह में हुई है या फिर बच्चा चुराने की अफवाह के कारण। तीसरा कोई कारण है ही नहीं। योजनाबद्ध तरीके से माब लिंचिंग नहीं होती। यह अचानक होती है। घोटाले के आरोपी तो हमारे देश में निर्भीक होकर घूमते हैं बल्कि ऐसे लोगों का भव्य स्वागत किया जाता रहा है। चारा घोटाले में फंसने के बाद लालू प्रसाद जब पहली बार जमानत पर छूटे थे तो राजद के लोगों ने उन्हें फूलमाला पहनाकर हाथी पर बिठाकर पटना की सड़कों पर ऐतिहासिक जुलूस निकाला था। कुछ लोगों ने आलोचना की भी तो दबी ज़ुबान से। कोई खुलकर सामने नहीं आया। शिबू सोरेन जब सांसद रिश्वत कांड में फंसे थे तो संताल आदिवासियों को इस बात का गुमान था कि उनके नेता इतने ताकतवर हैं कि प्रधानमंत्री से भी घूस ले सकते हैं। बहन मायावती के समर्थक उनपर भ्रष्टाचार के तमाम आरोपों के बावजूद उनके साथ खड़े हैं। मधु कोड़ा झारखंड की सड़कों पर शान से घूमते हैं। उनसे कोई पूछने नहीं जाता कि चार हजार का घोटाला करने के बाद आप मुंह से जनता के बीच आते हैं। डा. जगन्नाथ मिश्र ने कहा था कि भ्रष्टाचार हमारे राष्ट्रीय जीवन का एक हिस्सा है। जितने घोटालेबाज हैं वे ठाट से सीना चौड़ा कर देश के अंदर रहते हैं। घोटाला करके विदेश भागने की शुरुआत तो विजय माल्या ने की। ललित मोदी, नीरव मोदी और मेहुल चौकसी ने तो माल्या का अनुसरण भर किया। मेहुल चौकसी जिन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक मेहुल भाई कहकर पुकारते थे आज इस कदर भयभीत क्यों हैं। जनता से उन्हें डरने का कोई कारण नहीं है। उन्होंने जेल में कैदियों और जेल कर्मियों से भी खतरे की आशंका व्यक्त की है। इसमें भी कुछ दम नहीं है। ितना जरूर है कि 14 हजार करोड़ के घोटाले का आरोपी जब जेल पहुंचेगा तो वहां मौजूद गैंगस्टर उसका कुछ प्रतिशत बतौर रंगदारी जरूर मांगेंगे। जेलकर्मी भी उनसे सुविधा राशि की उम्मीद करेंगे लेकिन इसके बदले उनकी सुविधाओं का पूरा ध्यान रखेंगे। उन्हें जिस भी चीज की जरूरत होगी मुहैय्या करा देंगे। अपराधी सरगना भी रंगदारी लेने के बाद उनकी सुरक्षा का पूरा ध्यान रखेंगे। रंगदारी दरअसल मीडिया के शब्दकोश का शब्द है। अंडरवर्ल्ड के लोग वास्तव में प्रोटेक्शन फीस लेते हैं। फीस के बदले प्रोटेक्शन देते हैं। इतनी बड़ी रकम मेहुल भाई अकेले कैसे पचा सकते हैं। मौजूदा व्यवस्था में और लोगों का भी तो कुछ हक बनता ही है। मेहुल चौकसी ने माब लिंचिंग की आशंका अगर वारंट रद्द कराने के लिए व्यक्त की है तो कानूनी दांव-पेंच में इस तरह की तरकीब अपनाई ही जाती है। उन्हें एक मौलिक और सामयिक बहाना बनाने के लिए सराहा जाना चाहिए। लेकिन अगर सचमुच मेहुल भाई डरे हुए हैं तो डरने का कोई कारण नहीं। वे ठाट से स्वदेश लोटें एयरपोर्ट पर उनका भव्य स्वागत करने वाले फूलमाला के साथ मौजूद मिलेंगे। मुंबई में हाथी पर घुमाना तो संभव नहीं लेकिन उनका विजय जुलूस जरूर निकाला जाएगा। अगर राजनीति में उतर गए तो फिर कहना ही क्या। उन्हें चुनाव लड़ाने के लिए कई राजनीतिक दल दौड़ पड़ेंगे। आखिर भ्रष्टाचार हमारे राष्ट्रीय जीवन का अहम हिस्सा जो ठहरा।
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