रोमन कैथोलिक चर्च के विशप झारखंड के राज्यपाल से मिले। उनकी शिकायत
थी कि एक-दो मानवीय भूल के कारण पूरे ईसाई समुदाय को बदनाम किया जा रहा है। उनकी
आस्था के कारण उन्हें परेशान किया जा रहा है। जांच एजेंसियां लगातार सूचनाएं मांगकर
परेशान कर रही हैं। उनकी प्रतिक्रिया बेहद बचकानी जान पड़ती है। ईसाई समुदाय इन्हीं
कथित मानवीय भूलों के कारण बदनाम हो रहा है और समुदाय की ओर से बच्चे बेचने जैसी
मामूली भूलें करनेवालों पर कोई कार्रवाई न करना तरह-तरह के अंदेशे उत्पन्न कर रहा
है।
ईसाई धर्मगुरु जिसे मानवीय भूल बता रहे हैं, यानी बच्चे बेचना, वह
उनकी आस्था के तहत मामूली मानवीय भूल हो सकती है लेकिन भारतीय दंड संहिता और
भारतीय संस्कृति में यह जघन्य अपराध की श्रेणी में आता है। यदि विशपों ने इस घटना
को मामूली बताकर इसपर पर्दा डालने की कोशिश करने की जगह इसकी निंदा की होती। इसके
आरोपियों के खिलाफ समुदाय की ओर से जांच का निर्देश दिया होता तो उनके समुदाय पर
कोई उंगली नहीं उठाता। ईसाई धर्म गुरुओं ने इस मामले को मामूली मानकर और इसे हल्के
ढंग से लेकर यह संदेह उत्पन्न कर दिया है कि इसमें कहीं न कहीं प्रत्यक्ष या
परोक्ष रूप से जरूर उनकी सहमति थी। आस्था के कारण नहीं आस्था और अपराध के घालमेल
के कारण ईसाई समुदाय बदनाम हो रहा है। धर्मगुरुओं की संवेदनशील मुद्दों की अनदेखी
के कारण समुदाय बदनाम हो रहा है। यह सही है कि संघ और भाजपा के लोग ईसाई समुदाय के
प्रति अच्छी धारणा नहीं रखते। लेकिन बच्चे बेचने की घटना को महज मानवीय भूल बताकर ईसाई
धर्मगुरु आ बैल मुझे मार की उक्ति चरितार्थ कर रहे हैं। एफसीआरआई के तहत विदेशी धन
लेने वाले कितने एनजीओ के खाते बंद किए गए हैं, संभवतः विशपों को इसकी जानकारी
नहीं है। कानून तो अपना काम करेगा। जांच एजेंसियां अपना कर्तव्य निर्वहन करेंगी।
वे सूचनाएं मांग रही हैं और सबकुछ साफ सुथरा है तो उसे मुहैय्या कराने में क्या
परेशानी हो सकती है। उनके साथ सहयोग करना चाहिए। भारत में तो भारत की ही दंड
संहिता और संविधान लागू होगा न फादर। रोमन कानून तो यहां नहीं चलेगा। ईसाई मिशनरियों
की मानव सेवा सराहनीय रही है। इससे इनकार नहीं किया जा सकता। लोकिन सिर्फ अल्पसंख्यक
होने के नाते कानूनी प्रावधानों से छूट तो नहीं दी जा सकती न। अल्पसंख्यक होने के
नाते लोगों की सहानुभूति तो मिलती है लेकिन उसकी आड़ में कुछ भी करने की छूट तो
नहीं मिल सकती। हो सकता है अगर यह मामला कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में सामने आता
तो जांच की रफ्तार कुछ धीमी होती, इसपर पर्दा डाल दिया जा सकता था लेकिन मिशनरियों
के प्रति नरम रवैये के बावजूद जन भावनाओं को देखते हुए जांच तो फिर भी करनी ही
होती न। धार्मिक आस्था की आड़ में दूसरे के सामाजिक और मानवीय मूल्यों के साथ कोई
खिलवाड़ हो, भारत की जनता इसे स्वीकार नहीं कर सकती। धर्मगुरुओं को मानवता की बात
करनी चाहिए समुदाय की नहीं। बदनामी का कारण यदि समाज का कोई व्यक्ति या हिस्सा
बनता हो तो पहले उसपर अंकुश लगाना चाहिए। इसलिए विधवा विलाप छोड़कर मानवीय मूल्यों
के आधार पर आचरण पेश करने की जरूरत है।
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