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रविवार, 22 जुलाई 2018

गौ-तस्करी के अफवाहों के लिए किसे जिम्मेदार ठहराएगी सरकार




इसके पीछे तो कोई व्हाट्स एप या फेसबुक नहीं

देवेंद्र गौतम

सुप्रीम कोर्ट के सख्त निर्देश और प्रधानमंत्री तथा गृहमंत्री के कड़े बयान के बाद भी भीड़तंत्र की रक्तपिपासा शांत नहीं हो रही है। बच्चा चुराने के अफवाह के कारण एक साफ्टवेयर इंजीनियर की पीट-पीटकर हत्या के तुरंत बाद राजस्थान के अलवर जिले के रामगढ़ थाना क्षेत्र में गौ-तस्करी के संदेह में एक व्यक्ति को पीट-पीटकर मार डाला गया। जबकि दूसरा किसी तरह जान बचाकर भागने में सफल रहा। साफ्टवेयर इंजीनियर की हत्या के लिए सरकार ने व्हाट्स एप प्लेटफार्म से बच्चा चोरों के सक्रिय होने की अफवाह को जिम्मेदार माना। लेकिन गौ-तस्करी की अफवाह को फैलाने के लिए सरकार आखिर किसे जम्मेदार ठहराएगी। किसे कटघरे में खड़ा करेगी। सच्चाई यही है कि माब लिंचिंग को रोकने की कोई इच्छाशक्ति मोदी सरकार में नज़र नहीं आ रही। लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के दौरान एक तर्क यह भी रखा गया कि माब लिंचिंग तो पहले भी होती थी। 1984 के सिख दंगे इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं। सवाल है कि पहले भी होता था तो क्या इसे अब भी जारी रहने में कोई हर्ज नहीं है। यही कहना चाहती है सरकार। राजस्थान के रामगढ़ में उन्मादी भीड़ ने अकबर खान और असलम नामक जिन दो युवकों पर हमला किया वे एक ग्रामीण हाट से दो गायें खरीदकर हरियाणा ले जा रहे थे। भीड़ के हमले में अकबर की घटनास्थल पर ही मौत हो गई जबकि असलम किसी तरह भाग निकला।
उन्माद का विवेक से कोई नाता नहीं होता। कथित गौरक्षकों ने उन युवकों से यह भी जानने की कोशिश नहीं की कि वे गौवंश को किस मकसद से ले जा रहे हैं। मुसलिम संप्रदाय के लोग गाय के दूध का भी भरपूर स्तेमाल करते हैं। जरूरी नहीं कि वे गायों को वध करने ही ले जा रहे हों। गौरक्षकों ने देश में ऐसा दहशत का माहौल बना रखा है कि मुसलिम क्या हिन्दुओं के लिए भी गाय लेकर एक जगह से दूसरी जगह जाना मुश्किल हो रहा है। सवाल है कि यदि वे गायों की खरीद बिक्री को पूरी तरह रोक देना चाहते हैं तो मवेशी हाटों में गौवंश की बिक्री का विरोध क्यों नहीं करते। गौवंश को बेचने का काम तो गौपालक ही होते हैं। मोदी सरकार में भाजपा से जुड़े संगठन ही नहीं कट्टर हिन्दुवादी विचारधारा के लोग भी केंद्र में अपनी सरकार होने के भाव से संस्कारित हैं। उन्हें कानून व्यवस्था का कोई डर नहीं है। सरकारी तंत्र भी कहीं न कहीं उनकी पीठ थपथपा ही रहा है। झारखंड में रामगढ़ माब लिंचिंग मामले के आठ आरोपियों को जमानत मिली तो केंद्र सरकार के एक जिम्मेदार मंत्री जयंत सिन्हा ने माला पहनाकर उनका स्वागत किया और मिठाई खिलाकर उत्साहवर्धन किया। दिल्ली के कुछ दक्षिणपंथी बुद्धिजीवी गौरक्षा के नाम पर हत्या के आरोपियों की मदद के लिए कोश इकट्ठा कर रहे हैं और इसके लिए सोशल मीडिया का खुलकर इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्मादी भीड़ के हाथों हत्या के मामले में विपक्ष सरकार को कोस रहा है और सरकार इसे पुरानी प्रवृत्ति बताकर अपना पल्ला झाड़ रही है। पार्टी और सत्ता के शीर्ष पर बैठे किसी नेता इस तरह की घटनाओं पर कोई टिप्पणी नहीं करते। उनका मौन कहीं न कहीं समर्थन और संरक्षण का संकेत देता है।












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