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मंगलवार, 31 जुलाई 2018

रखरखाव में लापरवाही के कारण हुआ चुटूपाली घाटी का हादसा



देवेंद्र गौतम

मिथेन गैस से भरे एक टैंकर का ब्रेक बीच घाटी में फेल हुआ और उसकी चपेट में आकर सात वाहन और करीब दो दर्जन लोग झुलस गए। 30 जुलाई की रात यह हादसा रांची से रामगढ जाने वाली नेशनल हाइवे-23 पर घटित हुई। अनियंत्रित टैंकर ने वैगनआर कार को चपेट में लिया। उसके चालक की जान लेते हुए एक खराब पड़े कंटेनर से टकराया। कंटेनर लुढ़कते हुए एक चट्टान पर चढ़ गया और टैंकर पलटी खा गया। इससे गैस रिसाव होने लगा और आग लग गई। एक एंबुलेंस आग की चपेट में आया। उसका चालक बुरी तरह जख्मी हो गया। यात्रियों से भरी एक एसी बस के चालक ने टैंकर की आग से बचते हुए किनारे से निकलने की कोशिश की तो पीछे सो एक ट्रक ने धक्का मार दिया जिससे बस और ट्रक दोनो ही टैंकर की आग की चपेट में आ गए। ट्रक के धक्के से डिवाइडर से टकराती हुई बस दो बार पलटी खा गई। पीछे की सीटों पर बैठे यात्री तो बच गए और शीशा तोड़कर किसी तरह बाहर निकले लेकिन आगे और बीच की सीटों पर बैठे यात्री आग की चपेट में आकर बेतरह झुलस गए। चार लोगों की तो घटनास्थल पर ही मौत हो गई। शेष लोगों को रामगढ़ और रांची के अस्पतालों में पहुंचाया गया। बाइक पर सवार एक दंपत्ति आग की चपेट में आकर झुलस गई। इस तरह एक-एक कर सात वाहन दुर्घटना का शिकार हुए। 30 मीटर तक उठती आग की लपटों को शांत करने में कई दमकलों और रेस्क्यू टीमों को लगना पड़ा। दोनों तरफ यातायात रोक दिया गया या डायभर्ट कर दिया गया। नेशनल हाइवे होने के कारण देखते-देखते कई किलमीटर तक जाम लग गया।
इस पूरे हादसे की जड़ में वाहनों के रखरखाव में लापरवाही को मुख्य रूप से जिम्मेदार माना जाना चाहिए। पहाड़ी और पठारी इलाकों में चलने वाले वाहनों के रखरखाव पर विशेष ध्यान रखना होता है। मिथेन गैस जैसे ज्वलनशील वस्तु की ढुलाई करने वाले टैंकर का ब्रेक बीच घाटी में कैसे फेल होता अगर उसकी नियमित जांच और मरम्मत कराई जाती। ज्यादा से ज्यादा ट्रिप लगाने और लाभ कमाने के चक्कर में कमजोर होते ब्रेक की ओर मालिक का ध्यान नहीं गया। ड्राइवर ने भी अनदेखी की। वाहन का टायर किसी कारण अचानक पंक्चर हो सकता है लेकिन ब्रेक अचानक कैसे फेल हो सकता है। ब्रेक के कमजोर होने और फेल होने में खासा समय लगता है। अगर टैंकर को चलने से पहले गैराज में भेजा गया होता तो यह नौबन नहीं आती। बस चालक और ट्रक चालक ज्यादा होशियार बनने में हादसे की चपेट में आए। जहां 30 मीटर तक ऊंची लपटे उठ रही हों वहां किनारे निकल भागने की कोशिश दुःसाहस ही कही जा सकती है। यह सच है कि दुर्घटनाएं अचानक घटित होती हैं और उन्हे रोकना मुश्किल होता है। लेकिन उनकी पृष्ठभूमि तैयार करने में मानवीय भूल कार्यरत होती है इससे इनकार नहीं किया जा सकता। जो वाहन आग की चपेट में आए उन्हें तो बीमा कंपनियों से काफी हद तक क्षतिपूर्ति मिल जाएगी। लेकिन आग में झुलसने के कारण जो मौते हुईं। जिनके चेहरे और शरीर पर झुलसने के निशान आजीवन बने रहेंगे, उनके कष्टों की भरपाई कौन करेगा? इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है।  

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