अभिमन्यु कोहाड़ विदेशी मामलों के जानकार और रक्षा विशेषज्ञ हैं। राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन से जुड़कर जम्मू-कस्मीर में राष्ट्रवाद के प्रसार के अलावा अखिल भारतीय किसान महासंघ से जुड़कर किसान आंदोलन को भी गति दे रहे हैं। अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ईरान नीति और भारत सहित अन्य देशों पर ईरान से संबंध तोड़ने के लिए दबाव डालने को लेकर उनका आलेख....
अभिमन्यु कोहाड़
ईरान के साथ हुए परमाणु समझौते "जेसीपीओए संधि" को अमेरिका द्वारा एकतरफा रद्द किए जाने के बाद से अमेरिका द्वारा भारत समेत अन्य देशों पर ईरान के साथ सम्बन्ध तोड़ने का दबाव बनाया जा रहा है। भारत के दौरे पर आई हुई संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका की स्थायी प्रतिनिधि निक्की हेले में कहा कि 4 नवम्बर 2018 से पहले ईरान से तेल खरीदना भारत बन्द करे एवम ईरान के साथ सम्बन्ध समाप्त करने पर गम्भीरतापूर्ण विचार करे। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प इस बात को कई बार दोहरा चुके हैं कि ईरान के साथ व्यापार करने वाली सभी कंपनियों पर अमेरिका कड़े प्रतिबन्ध लगाएगा।
इस से पहले भी 2011 में अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों ने ईरान पर कड़े प्रतिबन्ध लगाए थे। उस समय ओबामा प्रशासन द्वारा भारत को इस शर्त पर कुछ रियायतें दी गयी थी कि भारत द्वारा ईरान से खरीदे जाने वाले तेल की मात्रा में कटौती की जाएगी, इसके अलावा भारत की सफल कूटनीति की वजह से ईरान से तेल का आयात जारी रहा। भारत द्वारा सऊदी अरब व इराक के बाद तीसरे नम्बर पर सबसे अधिक तेल ईरान से ही आयात किया जाता है। भारत अपनी जरूरत का 10 प्रतिशत तेल ईरान से आयात करता है।
भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कुछ दिन पहले पत्रकारों से बातचीत के दैरान कहा था कि भारत सिर्फ संयुक्त राष्ट्र संगठन के प्रतिबंधों को मानता है, किसी देश के प्रतिबंधों को नहीं, इसलिए भारत ईरान के साथ सम्बन्ध जारी रखेगा।
2011 में ईरान पर प्रतिबंध लगने के बाद व्यापार हेतु डॉलर पर पाबंदी लगा होने की वजह से भारत और ईरान ने रुपए में व्यापार करना शुरू कर दिया। ईरान की सरकार ने यूको बैंक में एक खाता खोला जिसमें भारत की तेल रिफाइनरियां ईरान से आयात किये गए तेल के बदले रुपए जमा कर देती थी। इसके अलावा भारत द्वारा ईरान को चावल, सोयाबीन, चीनी, दवाइयों का भी निर्यात किया जाता था।
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प इस बार किसी भी देश को किसी भी तरह की रियायत देने के मूड में नहीं हैं। राष्ट्रवादी दृष्टिकोण के अनुसार अमेरिका के इस तानाशाही रवैये के सामने भारत को झुकना नहीं चाहिए और ईरान के साथ सम्बन्ध जारी रखने चाहिए।
मित्रता बनाये रखने से भारत व ईरान दोनों को आर्थिक व सामरिक फायदे हैं। भारत को ईरान का तेल सऊदी अरब के मुकाबले काफी सस्ते दामों पर मिलता है और तेल का भुगतान करने के लिए ईरान 90 दिन की समयसीमा देता है, वहीं अन्य देश सिर्फ 30 दिन की समयसीमा देते हैं। ईरान भारत के साथ रुपए में व्यापार करने पर सहमत है, ऐसी स्थिति में भारत अपने विदेशी मुद्रा भंडार को भी सुरक्षित रख सकता है। रुपए में व्यापार करने से डॉलर की कीमतों का भी कोई प्रभाव भारत की करेंसी पर नहीं पड़ेगा।
यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि अमेरिका के अलावा यूरोप के अन्य देश जेसीपीओए संधि का अभी भी सम्मान कर रहे हैं, इस सूरत में व्यापार हेतु भारत रुपए के अलावा यूरो करेंसी का भी इस्तेमाल कर सकता है। पिछली बार 2011 में ईरान पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद तेल के आयात हेतु भारत एवम ईरान उन समुन्द्री टैंकरों का इस्तेमाल नहीं कर पा रहे थे जिनका बीमा पश्चिमी कम्पनियों में किया था। इस बार यह समस्या उतनी गम्भीर नहीं है क्योंकि अब की बार उन समुन्द्री टैंकरों के जरिये तेल का आयात हो सकता है जिन का बीमा यूरोपियन कम्पनियों द्वारा किया गया है।
भारत को ईरान के साथ व्यापार जारी रखने के कई सामरिक फायदे भी हैं। भारत ने ईरान में चाबहार पोर्ट को विकसित किया है जिस से भारत अफ़ग़ानिस्तान व अन्य देशों के साथ सीधे तौर पर जुड़ गया है। चीन द्वारा पाकिस्तान में विकसित किये जा रहे ग्वादर पोर्ट का मुकाबला करने हेतु ईरान का चाबहार पोर्ट भारत के लिए सामरिक तौर पर महत्वपूर्ण है। सऊदी अरब व पाकिस्तान की मित्रता का जवाब देने के लिए भी भारत और ईरान को एक-दूसरे की जरूरत है।
हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि अमेरिका एक भरोसेमंद मित्र नहीं है, खासकर ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद। भारत व अमेरिका के विदेश एवम रक्षा मंत्रियों के बीच होने वाले "2+2" बैठक को अमेरिका 3 बार स्थगित कर चुका है।
इन सभी वजहों से भारत को अमेरिका के सामने नहीं झुकना चाहिए एवम ईरान के साथ व्यापार जारी रखना चाहिए।
भारत द्वारा ईरान से तेल का आयात जारी रखना पूरी दुनिया को इस बात का भी संकेत होगा कि भारत अब एक ज़िम्मेदार वैश्विक शक्ति के तौर पर विश्व पटल पर दस्तक दे चुका है।
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लेखक - अभिमन्यु कोहाड़

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