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सोमवार, 9 जुलाई 2018

समझौते के लिए बुलाया और टांगी से काट डाला

रांची। डायन बिसाही के एक विवाद पर दो परिवारों के बीच सुलह की प्रक्रिया के क्रम में वादी पक्ष ने परिवादी पक्ष के तीन लोगों को घर बुलाकर टांगी से काट डाला। इसमें एक युवक की मौत हो गई जबकि दो लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। घटना पलामू जिले के भवनाथपुर थाना क्षेत्र की है। वहां अरसली दक्षिणी पंचायत का एक टोला है सिकियाटोला। सिकिआलेवा टोला के सुरेश भुइयां ने जंगाली भुइयां और उसके पुत्र सूर्यलाल एवं सर्वेश को रविवार की रात मांस खाने और दारू पीने के लिए बुलाया। इसी बीच समझौते पर बात होनी थी। दोनों पक्षों के बीच 2015 से गढ़वा कोर्ट में डायन विसाही का मुकदमा चल रहा था। जंगाली और उसके दो बेटे परिवादी थे। सोमवार को सुनवाई थी। इससे पूर्व सुलह समझौता पर बात चल रही थी। खाने-पीने के दौरान चर्चा चल ही रही थी कि परिवादी पक्ष के सुरेश भुइयां, उनके पुत्र दहदुल भुइयां ,विनय भुइयां व अन्य ने समझौते के लिए एक लाख रुपये देने की शर्त रखी। जंगाली ने मांगी गयी रकम देने मे असर्मथता जतायी। इसपर गरमा-गरमी हुई। इसी बीच सुरेश, दहदुल व उनके समर्थकों ने टांगी निकाल ली। जब तक जंगाली और उसके बेटे कुछ समझ पाते, दूसरे पक्ष ने उन पर ताबड़तोड़ वार कर दिया। इससे सूर्यलाल की मौके पर ही मौत हो गयी। जंगाली और सर्वेश बेतरह घायल हो गए।
सुरेश भुइयां ने ओझा-गुणी का आरोप लगाकर पांच वर्ष पूर्व भवनाथपुर थाना में जंगाली व उसके बेटों पर प्राथमिकी दर्ज करायी थी। वे पस में रिश्तेदार थे। वर्ष 2015 में केस शुरू हुआ, तो जंगाली और उसके बेटों समेत पांच लोगों को जेल जाना पड़ा। बाद में दोनों पक्षों ने रिश्ते का हवाला देकर कानूनी लड़ाई के बदले सुलह करने का मन बनाया। रविवार देर शाम सुलह की बात चल ही रही थी कि विवाद हो गया। बात इतनी बढ़ी कि निमंत्रण देने वाले ने रिश्तेदार के एक बेटे के मौत के घाट उतार दिया और शेष दो को मरणासन्न अवस्था में पहुंचा दिया। पुलिस ने घयलों को अस्पताल और मृतक के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। फिलहाल वे अस्पताल में जीवन-मृत्यु के बीच संघर्ष कर रहे हैं।
 झारखंड में डायन बिसाही के मामले में हत्या की घटनाएं आम हैं। यहां जागरुकता अभियान के तमाम सरकारी गैर सरकारी दावे खोखले साबित हो रहे हैं। यहां अंधविश्वास की जड़ें इतनी गहरी हैं कि उसे कोई डिगा नहीं पा रहा है। उनके बीच सरकारी संस्थाएं हैं, नक्सली हैं, एनजीओं हैं, सामाजिक संस्थाएं हैं लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ रहा।



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