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शनिवार, 18 अगस्त 2018

होम्योपैथी दवाओं के सुरक्षित वितरण की प्रक्रिया की शुरुआत


  * पैकेजिंग की नई तकनीक और वितरण से सकारात्मक बदलाव

रांची।  शहर के होम्योपैथी डॉक्टरों और प्रैक्टिशनरों ने दवाओं के पारंपरिक स्वरूप को मानकीकृत और लोकप्रिय बनाने के प्रयास में होम्योपैथिक दवा वितरण की सुरक्षित प्रक्रियाओं को लागू करना शुरू कर दिया है। एलोपैथिक दवाओं और यहां तक कि स्टेरॉइड्स के साथ बाजार में खुली दवाओं की बिक्री की खबरों के बाद इस नई पद्धति को अपनाया गया है। नई शुरुआत करते हुए डॉक्टरों ने मरीजों को प्री-मेडिकेटेड होम्योपैथिक दवाओं के पर्चे देना भी शुरू कर दिया है, जिससे पारंपरिक दवाओं की तुलना में ज्यादा गुणवत्ता, सुरक्षित और स्वच्छ दवाएं मिलती हैं। ये प्री-मेडिकेटेड दवाएं जिन्हें बॉइरॉन ट्यूब्स के नाम से भी पुकारा जाता है, सीलबंद ट्यूब में बिकने वाली ऊंची गुणवत्ता वाली दवाएं होती हैं और इन्हें होम्योपैथी में गोल्ड स्टैंडर्ड माना जाता है। ट्यूब्स पर इंग्रेडिएंट लेबलिंग, इंडिकेशंस, बैच संख्या, बेहतरीन डिजाइन, एक्सपायरी की तारीख और एमआरपी का उल्लेख किया जाता है। इसके साथ ही इन्हें हाथ से स्पर्श किए बिना हाईटेक संयंत्रों में बनाया जाता है।
कुछ डॉक्टर अब स्वदेशी पद्धति की तुलना में पैक किए गए ग्लोब्युल्स को तरजीह दे रहे हैं। पारदर्शी ग्लोब्युल्स ने अब पारंपरिक सफेद ग्लोब्युल्स की जगह लेना शुरू कर दिया है, जिन पर दवाओं के स्प्रे की कोटिंग होती है। ये नए ग्लोब्युल्स एक समान रूप से दवा का वितरण सुनिश्चित करते हैं, एक-दूसरे से चिपकते नहीं हैं, न ही लिक्विड में दवा में घुलते हैं और उनकी सतह पर अल्कोहल भी नहीं आती है। नतीजतन, खास आकार वाली ट्यूब से आसानी से दवा निकल सकती है। ये ट्यूब कई तरह के रंग में आती है, जो दवा के डायल्यूशन पर निर्भर करता है और इसे फार्मास्युटिकल ग्रेड प्लास्टिक से बनाया जाता है।
इस संबंध में राजधानी रांची के  होम्योपैथिक फिजीशियन डॉ.राजीव कुमार (अभी होम्यो हॉल एंड क्लीनिक) ने कहा कि समकालीन पैकेजिंग तकनीक और प्रजेंटेशन के कारण प्री मेडिकेटेड दवाएं हवा से नरमी को अवशोषित नहीं करती हैं। ये वाष्पीकृत नहीं होती हैं, क्योंकि इन्हें ग्लोब्यूल्स के साथ बहुत अच्छी तरह से मिश्रित किया जाता है, जो इन्हें अधिक प्रभावी और तीव्र क्रियात्मक बनाता है। नए लेबलिंग स्टैंडर्ड मरीजों को सामग्री के बारे में अधिक जागरूक बनाता है और होम्योपैथी में भरोसा बढ़ाता है।
इसके अलावा डॉक्टरों ने अपने क्लिनिक्स में ब्रांडेड दवाओं की बिक्री भी बंद कर दी है। अयोग्य कर्मचारियों को दवाओं के वितरण के काम से अलग किया जा रहा है। डिस्पेंसर्स ग्लोबुल्स में दवाएं, पानी या मिल्क शुगर के बजाय सीलबंद दवाएं या होम्योपैथिक डॉक्टर के पर्चे पर दवाओं की बिक्री कर रहे हैं। ओटीसी ब्रांडेड होम्योपैथिक दवाओं की बिक्री करने वाली फार्मेसीस ने भारत सरकार के नए नियमों के तहत इन दवाओं की सुरक्षा, दक्षता और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए जरूरी योग्यता रखने वाले कर्मचारियों की भर्ती कर रही हैं। डॉ.कुमार ने कहा कि विनिर्माण की अच्छी प्रक्रियाओं (जीएमपी) के अनुपालन में विनिर्माता दवाएं बनाने में इस्तेमाल की गई सामग्री के ग्रेड को भी स्पष्ट कर रहे हैं, जिससे होम्योपैथिक दवाओं के गुणवत्ता मानकों को कई गुना बढ़ाया जा रहा है।
ये नए उपाय शहर के होम्योपैथी के मरीजों के लिए राहत की बात है। उपभोक्ता भी होम्योपैथिक डॉक्टरों से ऐसी दवाएं देने की मांग कर रहे हैं, जिन पर लेबल लगा हो और उन पर दवा में इंग्रेडिएंट्स या कंटेंट का उल्लेख किया गया हो। पूर्व में कई लोग फैक्ट्री में सीलबंद बोतलों और प्री-सील्ड ट्यूब्स खरीदने लगे हैं, जिन्हें अधिकांश तौर पर बॉइरॉन जैसी जर्मनी और फ्रांस की कंपनियों द्वारा बनाया जाता है।
डा. अजय कुमार, होम्योपैथिक फिजीशियन, आइडियन होम्यो हॉल ने कहा कि आधुनिक पैकेजिंग और नई डिस्पेंसिंग विधि होम्योपैथिक दवाओं को अधिक विश्वसनीयता, गुणवत्ता और प्रभावकारिता प्रदान करती है। परंपरागत रूप से एक बीमारी के इलाज के लिए कई शीशियों को एक बार में तैयार करने की जरूरत होती थी।
होम्योपैथी चिकित्सा दुनिया की दूसरी बड़ी चिकित्सा प्रणाली है और इसमें ‘व्यक्तिगत’ उपचार पर जोर दिया गया है। भारत में होम्योपैथी को सबसे ज्यादा पसंदीदा प्रणाली के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है, यह रोजमर्रा की बीमारियों या पुरानी बीमारियों के लिए है। होम्योपैथिक दवाएं किफायती होती हैं और कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं होने के कारण इसे ऐलोपैथिक दवाओं की तुलना में ज्यादा पसंद किया जाता है।
डा. राजीव ने कहा कि होम्योपैथी 95 प्रतिशत बीमारियों का इलाज कर सकती है। एक दवा शरीर में कम से कम 10 बीमारियों का इलाज कर सकती है।  चूंकि यह प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करती है, इससे शरीर स्वयं संक्रमण से लड़ सकता है।

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