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बुधवार, 29 अगस्त 2018

अनिरुद्ध सिंह को बाल्सब्रिज विवि से मिली पीएचडी की मानद उपाधि

रांची। भूतपूर्व सैनिक कल्याण संघ के सचिव, अखिल भारतीय पूर्व सैनिक सेवा परिषद् के प्रांतीय महासचिव, रांची सिक्यूरिटी प्राइवेट लिमिटेड एवं बरखा कंसल्टेंसी सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक तथा सेंट्रल एसोसिएशन ऑफ़ प्राइवेट सिक्यूरिटी इंडस्ट्री के झारखण्ड चैप्टर के अध्यक्ष अनिरुद्ध सिंह को दिनांक 24 अगस्त 18 को दिल्ली में आयोजित एक दीक्षांत समारोह में बॉल्सब्रिज विश्वविद्यालय दोम्निका (यूनाइटेड
स्टेट्स ऑफ़ अमेरिका) के द्वारा मानद (Honorary) पी. एच. डी.   (Ph.D)
(डॉक्टर ऑफ़ फिलोसोफी) की उपाधि प्रदान की गयी. यह उपाधि श्री सिंह को उनके कौशल विकास पर जनजातीय युवाओं के व्यावहारिक गुणों पर किया गया शोध कार्य के लिए दी गयी. उनका विषय था—कंस्ट्रेंट्स एंड रेस्त्रैंट्स ऑफ़
ट्राइबल यूथ इन स्किल डेवलपमेंट   (CONTRAINTS AND RESTRAINTS OF TRIBAL
YOUTH IN SKILL DEVELOPMENT).  अनिरुद्ध सिंह अपनी संस्था और कंपनी के अंतर्गत विगत 6 वर्षों से कौशल विकास के कार्य से जुड़े हुए हैं और अबतक उनके केंद्र से 5000 से भी अधिक युवक-युवतियां प्रशिक्षित हो चुके हैं.
इनमे लगभग 60% को नौकरी लग चुकी है. इनके माध्यम से प्रशिक्षित युवतियां देश की बड़ी बड़ी संस्थाओं, बहुराष्ट्रीय कंपनियों में भी कार्यरत हैं.
 रांची एवं गुमला जिले के उग्रवाद प्रभावित क्षेत्र में अवस्थित उनके तीन
पांच सितारा आवासीय   मेगा स्किल प्रशिक्षण केन्द्रों में 90% प्रशिक्षु
जनजाति समुदाय से होते हैं. मरदा गाँव स्थित श्रीधर ज्ञान संस्थान केंद्र में विशेष रूप से केवल युवतियों का प्रशिक्षण होता हैं .  सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों से उन्हें प्रेरित कर प्रशिक्षण केन्द्रों तक लाने, उन्हें प्रशिक्षण कर नौकरी में नियुक्त करने तक  उनके व्यवहार का उन्होंने गहन अध्ययन किया है जिनसे कई चौंकाने वाले तथ्य उजागर हुए हैं.
दीक्षांत समारोह में कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय से डॉ. जी. सी.
डेका, एम्बेसडर ऑफ़ पीस अवार्ड (यु.पी.ऍफ़. साउथ कोरिया), के डॉ. भाकरी, कामनवेल्थ रिसर्च एक्सपर्ट फाउंडेशन कमिटी से डॉ. रमाशंकर अग्रवाल, एवं राज्य सभा टी.वी. के प्रमुख संपादक श्री शेम किशोर उपस्थित थे.
शायद यह पहला मौका है जब कौशल विकास से सम्बंधित विषय पर जनजातीय युवाओं पर किसी शोध पत्र में लिए पी.एच. डी. की उपाधि प्रदान की गयी है. उससे भी बड़ी बात यह रही है कि यह पहला अवसर है जब किसी पूर्व सैनिक को ग्रामीण स्तर पर शोध कार्य करने के लिए ऐसी उपधि प्रदान की गयी है.

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