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बुधवार, 29 अगस्त 2018

बहुत याद आएंगे समाजसेवी जकीउर रहमान उर्फ जाको भाई

समाज सेवी जकीउर रहमान उर्फ जाको भाई एक ऐसी शख्सियत थे जो कभी किसी को मदद करते थे तो दूसरों को पता नहीं चलने देते थे। 1940 का ईद आज भी मुझे याद है जब चांद रात को जकीउर रहमान उर्फ जाको भाई मेरे लिए नया कपड़ा और जूता खरीदे। उक्त बातें अमेरिका से आए हुए मोहिउद्दीन गणि उर्फ बब्बन भाई जो जकीउर रहमान के बचपन के दोस्त हैं उन्होंने कहीं। मोहिउद्दीन गनी ने कहा कि मैं अमेरिका के मैरीलैंड मैं रहता हूं 5 साल की उम्र से हमारी दोस्ती थी। उन्होंने पुराने समय का जिक्र करते हुए कहा कि 1940 में आर अली का केक बड़ा मशहूर था और हमारा दोस्त जकीउर रहमान को वहां का केक बहुत पसंद था। उस जमाने में रांची बहुत साफ सुथरा हुआ करता था, रांची में कोई मच्छर नहीं मिलता था। बहुत छोटा सा शहर था। डेली मार्केट बिल्कुल साफ सुथरा और जगमगाता रहता था। रांची मे ठंड इतनी रहती थी कि गर्मी में भी हम लोग चादर ओढ़कर सोते थे। मुझे याद है जाको भाई उर्दू लाइब्रेरी गुदड़ी रोड में किराए के मकान में खुले थे जिस का किराया था 10 रुपया, कल्लन बाबू के साथ मिलकर इस लाइब्रेरी की शुरुआत हुई। पहले उर्दू लाइब्रेरी का नाम मुस्लिम लाइब्रेरी था। जकीउर रहमान उर्फ जाको भाई किताब और अखबार पढ़ने के बहुत शौकीन थे। हमने भी कुछ किताबें मुस्लिम  लाइब्रेरी में डोनेट किए थे। बबन भाई ने पुरानी बातें को याद करते हुए कहा कि उर्दू लाइब्रेरी के बगल में होटल फिरदौस हुआ करता था जिसमें अक्सर हम लोग चिकन तंदूरी खाने जाते थे। जाको भाई की एक खूबी और थी कि वह किसी को भी मदद करते थे तो उनकी कोशिश यही रहती थी कि किसी और को पता ना चले। जब भी किसी को देते तो छुपा कर के देते थे। कई गरीब बच्चों को उन्होंने पढ़ाई में मदद किया है ।1980 में हम अमेरिका चले गए ।वाशिंगटन में जेलर बन गए। मगर रांची हमें याद बहुत आती रही हम जब कभी रांची आते तो जाको भाई से जरूर मिलते।पता नहीं अब अगले साल आ पाऊंगा कि नहीं अगर जिंदा रहा तो अपने दोस्त के परिवार वालों से जरूर मिलूंगा

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