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रविवार, 15 जुलाई 2018

दावाः रावण का अवतरण तो हो चुका है भाई








पवन श्रीवास्तव
देवेंद्र गौतम

कल्कि अवतार कब होगा। हो चुका है या होना है। होगा भी या नहीं। कोई भी इस सवाल का जवाब देने की स्थिति में नहीं है। लेकिन रावण का जन्म हो चुका है और वह अपने 10 सरों के साथ अपने काम में लगा हुआ है। यह दावा राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के केंद्रीय संयोजक पवन श्रीवास्तव ने आरा में हुई एक मुलाकात के दौरान किया। उन्होंने बताया कि रावण अपने समय का महा पराक्रमी राजा था। उसकी सबसे बड़ी खूबी अथवा सबसे बड़ी खामी यह थी कि उसने तमाम प्राकृतिक शक्तियों और संसाधनों पर कब्जा कर रखा था। पंच महाभूत को अपनी शक्तियों से बांधकर रखता था।
आज यूरोप और अमेरिका की कार्पोरेट कंपनियां यही कर रही हैं। उन्होंने जल और हवा पर एक हद तक नियंत्रण कर लिया है और उनका व्यापार कर रही हैं। भूजल के तमाम स्रोतों को सुनियोजित तरीके से प्रदूषित कर लोगों को बताया गया कि इसमें कौन-कौन से विषाणु कितनी मात्रा में मौजूद हैं और उनसे कौन-कौन सी बीमारियां हो सकती हैं। जनता के मन को भयाक्रांत करने के बाद उन्होंने पानी के शुद्धीकरण की मशीनें बेचनी शुरू कीं इसके बाद बोतलबंद पानी बेचना शुरू किया। आज लगभग हर घर में शुद्ध पेयजल के लिए कुछ न कुछ उपकरण लगे हुए हैं। घर से बाहर निकलने पर स्वस्थ रहने के लिए बोतलबंद पानी खरीदना जरूरी समझते हैं। सरकार भी पानी के व्यापार में कार्पोरेट के साथ कदमताल कर रही है। रेलवे विभाग रेल नीर बेच रहा है। स्टेशनों पर सस्ता पानी उपलब्ध कराने के लिए स्टाल लगा दे गए हैं। इस तरह जनता एक बार निकायों को जल कर दे रही है। दूसरी बार बोतलबंद पानी की खरीद में कर का भुगतान कर रही है। 
आज से 40-50 साल पहले इतना हाहाकार नहीं था। सरकारी तंत्र नलों के जरिए जिस जल की आपूर्ति करता था उसे लोग पूरे भरोसे के साथ पीते थे और जलजनित बीमारियों का वैसा प्रकोप नहीं था जैसा आज इस मामले में जागरुकता बढ़ने के बाद है। प्रकृति ने तमाम जीव-जन्तुओं के लिए अपने संसाधन मुफ्त उपलब्ध कराया है। उनपर सिर्फ मनुष्य जाति का एकाधिकार नहीं है बल्कि सभी जीव-जंतुओं का बराबर का अधिकार है। जब प्रकृति से मुफ्त में मिला पानी खरीदने और बेचने की वस्तु बनता जा रहा तो कार्पोरेट कंपनियां मानवेत्तर जातियों के साथ कैसे व्यापार करेंगी। पालतू मवेशियों के लिए तो मान लें उनके स्वामी पानी खरीद लेंगे लेकिन वन्यजीवों, स्वतंत्र पक्षियों और इसी तरह के अन्य जीवों के साथ किस मुद्रा में पानी का व्यापार होगा। कार्पोरेट कंपनियों को नदियों के बहते जल में डालर बहता दिखाई देता है लेकिन अन्य जीव-जंतु अपनी प्यास बुझाने के लिए डालर कहां से लाएंगे। पानी पर उनके प्राकृतिक अधिकार का हरण करके कार्पोरेट कंपनियां तो इस धरती को वीरान बनाकर रख देंगी। यह रावण का एक सर है जो प्रकृति के एक उपहार जल पर कब्जा करता जा रहा है।
जल ही क्यों अब तो सांस लेने के लिए आक्सीजन के छोटे-छोटे सिलिंडरों का उत्पादन हो रहा है। जिंदा रहना है तो हवा भी खरीदनी होगी। अभी वायुमंडल में व्याप्त हवा में स्वास्थ्य के लिए भारी नुकसान पहुंचाने वाले किन-किन गैसों की मात्रा बढ़ चुकी है यह जानकारी तेज़ी से दी जा रही है। फिर वही यक्ष प्रश्न खड़ा होगा कि धरती के अन्य जीव जंतुओं को शुद्ध हवा कैसे मिल पाएगी। उन्हें आक्सीजन का सिलिंडर कौन देगा। वे कंपनियों के लाभ का हिस्सा कैसे बनेंगे। पहले पानी को प्रदूषित कर उसका व्यापार शुरू किया फिर हवा को प्रदूषित कर उसकी बिक्री शुरू की। इस तरह कार्पोरेट का यह दस सरों वाला रावण तमाम प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जा करने के अभियान में निकल पड़ा है। उसके विजय रथ पर लगाम लगाने के लिए कोई राम अवतरित नहीं हुआ है।
पवन जी का कहना है कि राम अयोध्या के राजकुमार थे। वे चाहते तो रावण के साथ युद्ध को लिए स समय के बड़े-बड़े राजाओं से संधि कर सकते थे और वे तन-मन-धन के साथ राम के सहयोग में खड़े हो जाते। लेकिन राम ने किसी राजा से संपर्क नहीं किया। प्राकृतिक संसाधनों के अधिकार से वंचित वन्य पशुओं और आदिम जातियों को संगठित कर सेना बनाई और रावण के साथ युद्ध किया। वह युद्ध सिर्फ सीता को छुड़ाने के लिए नहीं बल्कि प्राकृतिक संसाधनों को उसके अवैध कब्जे से मुक्त कराने के उद्देश्य से भी लड़ा गया था। आज प्रकृति के मुफ्त उपहारों के व्यापार को बंद कराने के लिए एक बड़ी लड़ाई लड़नी होगी और इसे कोई सरकार नहीं बल्कि संसाधनों पर प्राकृतिक अधिकार से वंचित समुदायों को लड़ना होगा। सरकारें तो इस आधुनिक रावण के पक्ष में ही खड़ी रहेंगी।

1 टिप्पणी:

  1. चतुर बनिया सीधे साधे भोले भाले लोगो को डर भय बहला फुसला कर प्रलोभन देकर ठगते हुए माला माल हो जाता है ।
    पंच तत्वो पर सभी का समाश रुप से अधिकार हो ।

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