देवेंद्र गौतम
प्यास के व्यापारियों ने सिर्फ लाभ कमाने के लिए भूतल पर मौजूद
प्राकृतिक जल स्रोतों को प्रदूषित कर डाला
है और बोतलबंद पानी को स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य घोषित कर रखा है। उन लेकिन भारत
की आबादी का एक बड़ा हिस्सा न तो जल शोधन यंत्र लगाने की स्थिति में है और न बोतलबंद
पानी खरीदकर नियमित रूप से पी सकता है। उसे प्रदूषित पानी पर ही निर्भर रहना पड़ता
है जिसमें डायरिया, हैजा, टायफायड जैसे जानलेवा रोगों के विषाणु मौजूद हैं। ग्लोबल
एनवायरमेंट आउटलुक ने भारत की आबादी के बड़े हिस्से का जीवन जल संकट के कारण खतरे
में आ जाने की आसंका जताई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक 2030 तक दुनिया की
आधी से अधिक आबादी भीषण जल संकट की चपेट में आ जाएगी। अभी प्रति 8 सेकेंट विश्व के
एक बच्चे की मौत जल जनित रोग के कारण हो जाती है।
भूजल के प्राकृतिक स्रोतों की हालत तो गंभीर है ही। भारत में पानी का
व्यापार करने वाली लगभग 100 बड़ी कंपनियों के 1200 से अधिक बाटलिंग प्लांटों के
कारण भूमिगत जल का स्तर भी लगातार गिरता जा रहा है। जलसंकट बढ़ता जा रहा है। सरकार
की प्राथमिक जिम्मेदारी है आम जनता को शुद्ध पेयजल मुहैय्या कराना। लेकिन सरकार
सिर्फ जलकर की वसूली समय पर होने के प्रति चिंतित रहती है। वह तो खुद ही पानी के
व्यापारियों के साथ खड़ी हो गई है। उसके वाटर ट्रिटमेंट प्लांटों पर भी पानी के
व्यापारियों की प्रेतछाया मंडराती रहती है। सरकारी जलापूर्ति व्यवस्था एक तो
नियमित नहीं रह पाती दूसरे उनके शुद्धीकरण पर किसी न किसी कारण लोगों का भरोसा
कायम नहीं हो पाता।
अभी भारत में पीने के पानी का
व्यापार 15 अरब डालर का आंकड़ा पार कर रहा है। यह पूरी दुनिया के पेयजल व्यवसाय का
15 फीसद है। भारत में दुनिया की लगभग सभी बड़ी कंपनियां पानी के व्यवसाय में लगी
हैं। भारत में पहली बार 1965 में इटली के सिग्नोर फेनिस की बिसलरी कंपनी ने मुंबई
में बोतलबंद पानी का पहला प्लांट लगाया था। अभी इस कंपनी के 8 प्लांट और 11
फ्रेंचाइजी कंपनियां इस धंधे में लगी हैं। भारत के बोतलबंद पानी के धंधे में 60
प्रतिशत हिस्सेदारी बिसलरी कंपनी की है। पारले ग्रूप के वेली ब्रांड के 40 बोटलिंग
प्लांट भारत में हैं। उनका उत्पाद 5 लाख खुदरा काउंटरों से बेचा जा रहा है। इस तरह
के सौ से अधिक खिलाड़ी मैदान में हैं। पाउच में पानी और छोटे स्तर के व्यावसायिक
ट्रिटमेंट प्लांटों की गिनती तो संभव ही नहीं है। 20 शताब्दी तक भारत में बोतलबंद
पानी का प्रचलन सिर्फ अमीरों के घरों तक था लेकिन 21 शताब्दी आते-आते मध्यम और
निम्न मध्यम वर्ग भी इसके उपभोक्ताओं में शामिल हो चुका है।
दुनिया में बोतलबंद पानी के व्यापार की शुरुआत यूरोप में पहली बार
1845 में पोलैंड के मैली शहर में हुई जब पोलैंड स्प्रिंग बाटल्ट वाटर कंपनी ने अपना
पहला प्लांट लगाया। अमेरिका में 2008 तक बोतलबंद पानी की बिक्री 8.6 बिलियन डालर
पहुंच चुकी थी। यूरोप और अमेरिका में भोजन बनाने में भी बोतलबंद पानी का ही उपयोग
किया जाता है। वहां की धार्मिक संस्थाओं ने बोतलबंद पानी के इस्तेमाल का विरोध
किया लेकिन वह किसी बड़े आंदोलन का रूप नहीं ले सका।
जल मुक्ति संग्राम ही एक मात्र विकल्प है
जवाब देंहटाएंसही बात
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