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सोमवार, 13 अगस्त 2018

अधिकारियों की खींचतान, खतरे में जान


* तालमेल के अभाव का खामियाजा भुगत रही जनता

संदर्भ : शहर में डेंगू,मलेरिया और चिकनगुनिया का प्रकोप


* नवल किशोर सिंह

रांची। शहर में फैली डेंगू,मलेरिया और चिकनगुनिया महामारी का रूप लेती जा रही है। दिन-ब-दिन इन बीमारियों का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। राजधानी रांची के कई मुहल्ले प्रभावित हैं। स्वास्थ्य विभाग और नगर निगम के बीच तालमेल नहीं होने की वजह से बीमारियों पर नियंत्रण नहीं हो पा रहा है। विभागीय अधिकारियों की खींचतान के कारण डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया का प्रकोप बढ़ रहा है। स्वास्थ्य विभाग और नगर निगम प्रशासन का कहना है कि आपसी तालमेल से इस महामारी से निबटने के लिए समुचित उपाय किए जा रहे हैं, लेकिन सतही तौर पर हकीकत कुछ और बयां कर रही है। शहर के हालात से यह साफ झलक रहा है कि विभागीय अधिकारियों के बीच समन्वय का घोर अभाव है। चिकनगुनिया से पीड़ित मरीजों की संख्या के बारे में स्वास्थ्य विभाग और सूबे के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रिम्स के आंकड़ों में अंतर से यह स्पष्ट पता चलता है कि विभागों के बीच तालमेल नहीं है। यही नहीं, महामारी से निबटने के लिए अभियान चलाने और इसकी समुचित मानिटरिंग करने के लिए संयुक्त रूप से कोई कमिटी भी नहीं बनाई गई। गौरतलब है कि बीते दिनों स्वास्थ्य विभाग की ओर से जारी आंकडों के मुताबिक सिर्फ तीन लोगों को चिकनगुनिया से पीड़ित बताया गया, जबकि रिम्स प्रबंधन ने रिपोर्ट जारी कर पीड़ितों की संख्या 69 बताई। वहीं केन्द्र सरकार के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मलेरिया रिसर्च की ओर से शहर में किए सर्वे के अनुसार चिकनगुनिया और डेंगू से प्रभावित घरों की संख्या 450 बताई गई है। जबकि राज्य सरकार का स्वास्थ्य महकमा के आंकड़े मात्र 103 घरों को ही इन रोगों से प्रभावित बताया।
 ये तो हुई आंकड़ों की बात। अब जरा विभागीय अधिकारियों की कार्यशैली पर नजर डालें। शहर महामारी की चपेट मे है। इस बीच नगर आयुक्त विदेश की सैर करने चले गए। यही नहीं, जाने से पहले उन्होंने सहायक लोक स्वास्थ्य पदाधिकारी के अधिकारों में कटौती कर सिटी मैनेजर को जिम्मा दे दिया। अब हालात ऐसे हैं कि स्वास्थ्य पदाधिकारी ने निर्देशानुसार शहर के सफाई कार्यों से अपने को अलग कर लिया है। उन्हें जो नई जिम्मेदारी दी गई है, उसके अनुसार वे सिर्फ जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र पर हस्ताक्षर भर कर रही है। प्रशासनिक गलियारों में इसे पावर की लड़ाई कही जा रही है। वहीं कई पार्षद और अन्य जनप्रतिनिधियों ने इसे नगर आयुक्त की मनमानी मानते हुए विरोध जताया है। उनके मुताबिक शहर की स्थिति नारकीय होती जा रही है और नगर आयुक्त अपने अधिकारों का दुरुपयोग कर रहे हैं। सक्षम पदाधिकारी के कार्यों में कटौती कर अपने चहेतों और अनुभवहीन कर्मियों को पावर सौंप दिया है। वहीं महापौर और उप महापौर का इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करने पर भी कुछ जनप्रतिनिधियों ने सवाल खड़े किए हैं।
 बहरहाल, शहरवासी महामारी को लेकर सशंकित हैं । उन्हें बेहतर चिकित्सा सेवाएं और प्रशासनिक महकमे से समुचित सहयोग की अपेक्षा है। ऐसे में निगम के नगर आयुक्त और अन्य अधिकारियों के बीच तालमेल जरूरी है। अन्यथा जनता को नुकसान होगा और फिर..........।

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